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सोशल मीडिया के नियमन में समाज की अहम भूमिका संवाद माध्यम का सकारात्मक उपयोग जरूरी

Oct 24th, 2016 11:09 am | By | Category: SPECIAL NEWS COVERAGE

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माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय में ‘कानून एवं व्यवस्था के लिए सोशल मीडिया’विषय पर दो दिवसीय कार्यशाला का आयोजन

Thenewsmanofindia.com
भोपाल-24 अक्टूबर । समाज में सबके अपने-अपने सत्य हैं। लोग एक आंशिक सत्य को ही पूर्ण सत्य बनाकर सोशल मीडिया पर आगे बढ़ाते हैं। अपने आंशिक सत्य के सामने वह दूसरे के आंशिक सत्य को भी देखना नहीं चाहते। सोशल मीडिया ऐसा माध्यम है, जिस पर एक बार संदेश प्रसारित हो गया, तब उसका नियंत्रण हमारे हाथ में नहीं रहता। वह समाज के सामने किस प्रकार प्रस्तुत होगा, समाज पर किस प्रकार का प्रभाव डालेगा, यह तय नहीं। विचार किए बिना प्रसारित यह आंशिक सत्य समाज में कई बार तनाव का कारण बनता है। इसलिए आज आवश्यकता है कि सोशल मीडिया का स्व नियमन करने के लिए सामाजिक सहमति बनाई जाए, ताकि सोशल मीडिया का सकारात्मक उपयोग बढ़े और नकारात्मक उपयोग कम से कम हो। यह विचार पुलिस महानिदेशक ऋषि कुमार शुक्ला ने व्यक्त किए। शुक्ला माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय की ओर से ‘कानून एवं व्यवस्था के लिए सोशल मीडिया’ विषय पर आयोजित दो दिवसीय कार्यशाला के उद्घाटन सत्र में संबोधित कर रहे थे। कार्यशाला में प्रदेशभर से पुलिस अधिकारी एवं विषय विशेषज्ञ शामिल हुए हैं।

पुलिस महानिदेशक शुक्ला ने कहा कि प्रिंट और इलेक्ट्रोनिक मीडिया के जरिए प्रसारित होने वाले समाचारों एवं विचारों के चयन से लेकर संपादन की एक व्यवस्था है, लेकिन समाज पर व्यापक प्रभाव छोडऩे वाले सोशल मीडिया में संदेश के संपादन की कोई व्यवस्था नहीं है। इसलिए यह आवश्यक है कि सोशल मीडिया से प्रसारित विचारों और सूचनाओं को संतुलित करने के लिए कोई व्यवस्था बनाई जाए। लेकिन, कोई भी व्यवस्था या कानून तब तक प्रभावी नहीं हो सकता, जब तक उसे समाज से सहयोग न मिले। इसलिए सोशल मीडिया का नियमन करने की व्यवस्था बनाने में सामाजिक सहमति आवश्यक है। उन्होंने कहा कि संवाद का नया माध्यम अप्रत्याशित संभावनाओं से भरा है। अप्रत्याशित स्थितियां अधिक चुनौतीपूर्ण होती हैं। तनावपूर्ण स्थितियां एक सीमा के पार चली जाती हैं, तब उन्हें नियंत्रित करना मुश्किल हो जाता है, जैसे कि अभी कश्मीर घाटी की स्थितियां हैं। इसलिए हमें स्वयं के लिए एक सीमा रेखा खींचनी चाहिए। श्री शुक्ला ने कहा कि अब तक तकनीक धीरे-धीरे प्रभाव डालती थीं, इसलिए बदलाव को समाज समुचित ढंग से ग्राह कर लेता था। लेकिन, अब तकनीक इतनी तेजी से प्रभाव डाल रही हैं, जिससे सामाजिक असंतोष बढ़ता दिखाई दे रहा है।
उद्घाटन सत्र के विशिष्ट अतिथि एवं प्रदेश के विशेष पुलिस महानिदेशक (प्रशिक्षण) स्वर्णजीत सिंह ने कहा कि हमारा संविधान हमें अभिव्यक्ति की आजादी देता है, लेकिन प्रश्न है कि हमें इस आजादी का उपयोग कहाँ तक करना चाहिए? क्या हमें यह नहीं सोचना चाहिए कि हमारे विचार अन्य लोगों को आहत तो नहीं कर रहे? हमारे शब्दों और विचारों का समाज एवं देशहित में क्या योगदान हो सकता है? जब हम इन प्रश्नों पर विचार करेंगे तब हमारे ध्यान में आएगा कि अभिव्यक्ति की आजादी की सीमा क्या है? उन्होंने कहा कि सोशल मीडिया के लिए कानून बनाने का यह अर्थ नहीं है कि उससे अभिव्यक्ति की आजादी बाधित होगी, बल्कि यह इसलिए है ताकि एक-दूसरे के प्रति सम्मान बना रहे। श्री सिंह ने उदाहरण देकर यह भी बताया कि दुनिया के तमाम देशों में किस प्रकार अपराध पर नियंत्रण रखने में सोशल मीडिया अपनी सकारात्मक भूमिका निभा रहा है।

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