भोपाल की वह काली रात: 2 दिसम्बर 1984 की त्रासदी एक बच्चे की यादों में
Dec 2nd, 2025 10:06 pm | By ThenewsmanofIndia.com | Category: SPECIAL NEWS COVERAGE
द न्यूज़मैन ऑफ़ इंडिया | भोपाल | 2 दिसम्बर 1984 की रात—भोपाल की वह रात जिसे इतिहास ने तो दर्ज कर लिया, पर जिसने उसे जिया, उनके लिए वह आज भी एक जख्म की तरह ताज़ा है। बहुतों के लिए यह बीते समय की दास्तान है, मगर कुछ लोगों के लिए यह उनके बचपन का वह डरावना अध्याय है जो चालीस साल बाद भी धुंधला नहीं पड़ा।
हम पुराना भोपाल, शाजहानाबाद के 12 महल इलाके में रहते थे। मैं लगभग आठ साल का था, कैम्ब्रिज हायर सेकेंडरी स्कूल, लोअर ईदगाह हिल्स में तीसरी कक्षा का छात्र। वह एक सामान्य सर्द रविवार था। डीडी पर हर रविवार की तरह एक हिंदी फ़िल्म आती थी — उस दिन अमोल पालेकर की किसी फ़िल्म को देखा था, जिसका नाम अब याद नहीं। रात का खाना खाकर हम सब रजाइयों में दुबककर सो गए।
करीब 3 बजे मेरी अचानक नींद खुली। गले और नाक में अजीब-सी जलन हो रही थी। जैसे ही मैंने रजाई हटाई, कमरा धुएँ की एक परत से भरा दिखा। आँखों में तेज जलन होने लगी और पानी बहने लगा। कुछ ही पलों में घर के सभी लोग खाँसते-खाँसते जाग गए। बाहर से पड़ोसियों की घबराई हुई आवाज़ें आ रही थीं। माँ ने हम सबको रजाई से चेहरा ढँकने और बिस्तर से न उठने की हिदायत दी।
उस घबराहट में मुझे दो आवाज़ें बेहद साफ़ सुनाई दे रही थीं—
एक, भागती-दौड़ती ट्रैफिक की लगातार हॉर्न की आवाज़ें,
दूसरी, छोला रोड की पुत्था मिल की डरावनी, लगातार बजती सायरन।
करीब 25–30 मिनट हम खाँसी, घबराहट और साँस लेने में तकलीफ़ से जूझते रहे। तभी बाहर से एक पुलिसवाला चिल्लाता हुआ सुना—
“सब घरों से बाहर निकलो! बाहर आ जाओ, अब खतरा नहीं है!”
दिसम्बर की ठंड के बावजूद हम सब पसीने से तरबतर बाहर आए। गली में अफरा-तफरी मची थी। कोई कह रहा था मिर्ची के गोदाम में आग लगी है, तो कोई यूनियन कार्बाइड के टैंक फटने की बात कर रहा था।
लगभग एक घंटे बाद शोर कुछ कम हुआ, पर पुत्था मिल का सायरन लगातार बजता रहा।
सुबह होने पर हमारे घर के कुछ लोग उल्टियाँ कर रहे थे और बहुत कमजोर महसूस कर रहे थे। सुबह 8 बजे रेडियो खोला—और वही आवाज़ गूँजी जिसने सबकुछ बदल दिया:
“यह आकाशवाणी है, अब आप देवकीनंदन पांडे से समाचार सुनिए… भोपाल, मध्यप्रदेश में कल रात अमेरिकन कंपनी यूनियन कार्बाइड से मिथाइल आइसोसाइनेट गैस लीक होने से 35 लोगों की मौत और लगभग 3000 लोग प्रभावित हुए हैं…”
अब सब स्पष्ट हो चुका था — यह गैस लीक था, और वह भी यूनियन कार्बाइड का।
तभी हमारा दूधवाला आया, जो बेरसिया रोड की दिशा से आता था — जो सबसे प्रभावित इलाका था। उसने जो कहा, उसे सुनकर रूह काँप गई—
“साहब, जहाँ देखो वहाँ इंसानों और जानवरों की लाशें पड़ी हैं। मैं किसी तरह रास्ता पार कर के आया हूँ। दूध ले लो, अब पता नहीं मैं कितने दिन आ पाऊँगा…”
कुछ देर बाद एक पड़ोसी हमीदिया अस्पताल से लौटा, दहल उठा था—
“वहाँ तो लाशें ही लाशें पड़ी हैं… डॉक्टर पहले ये देख रहे हैं कि इन ढेरों में से कौन ज़िंदा है और कौन नहीं…”
यह सुनकर पहली बार उस रात की भयावहता वास्तव में समझ आई। डर और बढ़ गया — अस्पताल जाने का साहस किसी में नहीं था।
करीब 11 बजे, जब माँ खाना बना रही थीं, अचानक गली में फिर से चीख सुनाई दी—
“भागो! फिर से गैस लीक हो गई है!”
यह बिजली गिरने जैसा था। लगा, अब हमारी बारी है। पूरा मोहल्ला भागता हुआ ईदगाह हिल्स की ओर चला—क्योंकि अफवाह थी कि MIC गैस निचले इलाकों में जमती है और ऊँचाई पर असर कम होता है।
ईदगाह पहाड़ी पर पहुँचकर देखा—करीब हजारों लोग जमा थे। यूनियन कार्बाइड का प्लांट वहाँ से साफ़ दिखता था। सभी की नज़रें उधर टिकी थीं। कई घंटे बाद भी किसी नए रिसाव का कोई निशान नहीं था।
करीब 3 बजे एक पुलिस वैन आई। पुलिस वाले ने बताया कि प्लांट में गुस्साई भीड़ आग लगाने वाली थी, इसलिए ग़लत अफवाह फैलाकर भीड़ को तितर-बितर किया गया।
“कोई नया रिसाव नहीं है, आप सब घर जा सकते हैं।”
कुछ दिनों बाद घोषणा हुई कि टैंक में बची गैस को निष्क्रिय किया जाएगा, इसलिए पुराने भोपाल को एक हफ्ते के लिए खाली कराया जाएगा। पूरा शहर बाहर निकलने को बेचैन था। ट्रेनों में जगह ही नहीं थी। हम भी अपने पड़ोसियों के साथ पास के एक गाँव चले गए, एक हफ्ते बाद लौटे।
हालाँकि धीरे-धीरे सब सामान्य दिखने लगा, लेकिन बीमारियाँ महीनों तक पीछा नहीं छोड़ती थीं।
आज 30 साल से अधिक बीत चुके हैं, पर वह रात आज भी कल जैसी लगती है। आज भी अगर पुत्था मिल का सायरन सामान्य से थोड़ी देर तक बज जाए, दिल दहशत से काँप उठता है। बिखरा हुआ अतीत फिर सामने आ खड़ा होता है — आँखों की जलन, घरों की चीखें, बेबसी और मौत की गंध।
भोपाल त्रासदी दुनिया की सबसे भयानक औद्योगिक दुर्घटनाओं में से एक थी। और जो बच गए, वे आज भी उस डर को दिल में लिए जीते हैं।






























